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LIFE - जीवन

विलियम शेक्सपियर (William Shakespeare) ने कहा था कि जिंदगी एक रंगमंच है और हम लोग इस रंगमंच के कलाकार | सभी लोग जीवन (Life) को अपने- अपने नजरिये से देखते है| कोई कहता है जीवन एक खेल है (Life is a game), कोई कहता है जीवन ईश्वर का दिया हुआ उपहार है (Life is a gift), कोई कहता है जीवन एक यात्रा है (Life is a journey), कोई कहता है जीवन एक दौड़ है (Life is a race) और बहुत कुछ| मैं आज यहाँ पर “जीवन” के बारें में अपने विचार share कर रहा हूँ और बताने की कोशिश करूंगा की जीवन क्या है? (What is Life)|मनुष्य का जीवन एक प्रकार का खेल है – Life is a Game और मनुष्य इस खेल का मुख्य खिलाडी| यह खेल मनुष्य को हर पल खेलना पड़ता है| इस खेल का नाम है “Game of Thoughts (विचारों का खेल)”| इस खेल में मनुष्य को दुश्मनों से बचकर रहना पड़ता है|मनुष्य अपने दुश्मनों से तब तक नहीं बच सकता जब तक मनुष्य के मित्र उसके साथ नहीं है| मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र “विचार (thoughts)” है, और उसका सबसे बड़ा दुश्मन भी विचार (Thoughts) ही है| मनुष्य के मित्रों को सकारात्मक विचार (Positive Thoughts) कहते है और मनुष्य के दुश्मन

ध्यान क्या है ? ध्यान की परिभाषा ध्यान का अर्थ, क्रिया नहीं है ध्यान, ध्यान का स्वरूप

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नमस्कार दोस्तो आज हम बात करेंगे ध्यान के बारे मे तो आइये सबसे पहले हम जानते है की ध्यान होता क्या है ! ध्यान क्या है ? ? योग का आठवां अंग ध्यान अति महत्वपूर्ण हैं। एक मात्र ध्यान ही ऐसा तत्व है कि उसे साधने से सभी स्वत: ही सधने लगते हैं, लेकिन योग के अन्य अंगों पर यह नियम लागू नहीं होता। ध्यान दो दुनिया के बीच खड़े होने की स्थिति है। ध्यान की परिभाषा : तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम।। 3-2 ।।-योगसूत्र अर्थात- जहां चित्त को लगाया जाए उसी में वृत्ति का एकतार चलना ध्यान है। धारणा का अर्थ चित्त को एक जगह लाना या ठहराना है, लेकिन ध्यान का अर्थ है जहां भी चित्त ठहरा हुआ है उसमें वृत्ति का एकतार चलना ध्यान है। उसमें जाग्रत रहना ध्यान है। ध्यान का अर्थ : ध्यान का अर्थ एकाग्रता नहीं होता। एकाग्रता टॉर्च की स्पॉट लाइट की तरह होती है जो किसी एक जगह को ही फोकस करती है, लेकिन ध्यान उस बल्ब की तरह है जो चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाता है। आमतौर पर आम लोगों का ध्यान बहुत कम वॉट का हो सकता है, लेकिन योगियों का ध्यान सूरज के प्रकाश की तरह होता है जिसकी जद में ब्रह्मांड की हर चीज पकड़ में आ ज

मन को काबु मे केसे करे

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एक प्रसिद्ध सूक्ति है - मन ही बंधन का कारण है और मन ही मुक्ति का कारण है। मन   को वश मे करना इतना आसान नहीं होता है, मन को दुष्ट घोड़े की उपमा दी गई है, जो अनियंत्रित होकर कुमार्ग पर दौड़ता हुआ स्वयं की और सवार की हानि करता है। वैसे ही अनियंत्रित मन भी प्राणी को संकटों में ही डालता है। इस चंचल मन पर नियंत्रण कैसे करें? इस पर नियंत्रण के दो ही मार्ग हैं -या तो इसका दमन किया जाए या इसका मार्ग ही बदल दिया जाए। जिस वस्तु का दमन किया जाता है, कालांतर में वह वस्तु नि:सत्व हो जाती है। किसी पदार्थ को हाथ में लेकर उसे दबाइए, सार तत्व उसमें से निकल जाएगा। मन को निस्सार तो नहीं करना है। ऐसा करने पर वह बलहीन हो जाएगा और मनोबल के टूटने पर साधना-आराधना भी नहीं कर सकेगा। मन के कारण ही हम मनुष्य है। मन से ही चिंतन-मनन का भी सामर्थ्य हममें होता है।  " ध्यान" ध्यान करने से हम आध्यात्मिक रूप से हम अपने मन को ईश्वर से जोड़ सकते हैं और यही एक मात्र रास्ता होता है कि  उसकी दिशा ही बदल दो। जो मन विकारों की ओर जा रहा है, उसे सदविचारों की ओर मोड़ दो। यह दिशा-परिवर्तन करना ही मन पर विजय पाना है। पदा