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कुंडलिनी जागरण कैसे करें ?

मात्र ईश्वर के अस्तित्व से ब्रह्मांड निरंतर बना हुआ है । कुंडलिनी योग के अनुसार, ईश्वर की शक्ति जो ब्रह्मांड को चलाती है उसे चैतन्य कहते है । एक व्यक्ति के विषय में, चैतन्य को चेतना कहते हैं और यह ईश्वरीय शक्ति का वह अंश है जो मनुष्य की क्रियाओं के लिए चाहिए होती है । यह चेतना दो प्रकार की होती है और अपनी कार्य करने की अवस्था के आधार पर, इसे दो नाम से जाना जाता है । क्रियाशील चेतना  – यह प्राण शक्ति भी कहलाती है । प्राण शक्ति स्थूल देह, मनोदेह, कारण देह और महाकारण देह को शक्ति देती है । यह चेतना शक्ति की सूक्ष्म नालियों द्वारा फैली होती है जिन्हें नाडी कहते हैं । यह नाडी पूरे देह में फैली होती हैं और कोशिकाओं, नसों, रक्त वाहिनी, लसिका (लिम्फ) इत्यादि को शक्ति प्रदान करती हैं । संदर्भ हेतु यह लेख देखें

ध्यान करने पर शरीर मे क्या परिवर्तन होता है

 मालिक एक, नामः अनेक ध्यान साधना , और तमाम साधना थोड़ा गहरा अनुभव। जब साधक की साधना थोड़ी गहरी हो जाती, जब उनकी चेतना पहले से थोड़ी बिकसीत होने लगती चाहे वो किसी भी ज़रिया से हो तंत्र, मंत्र, ध्यान, बिपासना, त्राटक, इष्ट के प्रति समर्पण या इस्लामिक और किसी भी रास्ते से हुई हो पर इस अवस्था पे आकर सब विधी सब रास्ते और ज़रिया चेतना को यहाँ लाकर एक कर देता और सारे रास्ते यहाँ आकर शून्यता में विलीन होने लगती और सभी का अनुभव एक जैसा होने लगता और वो धीरे धीरे सूक्ष्म विचारों से अलग होने लगता तो धीरे धीरे उनकी चेतना वहाँ की ओर बढ़ने लगती जहाँ विचारों और शब्दों की निर्माण होती और जिस ऊर्जा से होती, अर्थात साधक अलौकिक consciences की दुनियाँ और स्थूल से उसकी चेतना सिमटने लगती एक ऊर्जा के रूप में। और साधक सूक्ष्म  अर्थात आत्मा को थोड़ा थोड़ा जानने लगता महसूस करने लगता। इस बीच साधक को बहुत संभलने के अवयसकता पड़ती। ध्यान दीजिएगा, साधक को साधना के दौरान लगता हैं की शायद अब धीरे धीरे सिद्ध होते जा रहा हैं, ऐसा लगता जैसे वो कोई भी चमत्कार करने में अब सक्षम ऐसा तब लगता हैं जब नाड़ियों में प्राण वायु के