कुंडलिनी जागरण कैसे करें ?
मात्र ईश्वर के अस्तित्व से ब्रह्मांड निरंतर बना हुआ है । कुंडलिनी योग के अनुसार, ईश्वर की शक्ति जो ब्रह्मांड को चलाती है उसे चैतन्य कहते है । एक व्यक्ति के विषय में, चैतन्य को चेतना कहते हैं और यह ईश्वरीय शक्ति का वह अंश है जो मनुष्य की क्रियाओं के लिए चाहिए होती है ।
यह चेतना दो प्रकार की होती है और अपनी कार्य करने की अवस्था के आधार पर, इसे दो नाम से जाना जाता है ।
- क्रियाशील चेतना – यह प्राण शक्ति भी कहलाती है । प्राण शक्ति स्थूल देह, मनोदेह, कारण देह और महाकारण देह को शक्ति देती है । यह चेतना शक्ति की सूक्ष्म नालियों द्वारा फैली होती है जिन्हें नाडी कहते हैं । यह नाडी पूरे देह में फैली होती हैं और कोशिकाओं, नसों, रक्त वाहिनी, लसिका (लिम्फ) इत्यादि को शक्ति प्रदान करती हैं । संदर्भ हेतु यह लेख देखें
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें