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शायद कोई मर्द यह लिखने की हिम्मत न करे, /Sayad koi mard yah likhne ki himmat na kre

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 शायद कोई मर्द यह लिखने की हिम्मत न करे..... आंख खुली... कमरे का दरवाज़ा खुला था... बाहर मेरी दुनिया... यानी बच्चे और बीवी बैठे कुछ खा रहे थे... उन्हें देख कर आधी बीमारी जाती महसूस हुई _ मैने मुस्कुरा के उन्हें देखा _ प्यास लगी थी...."फैजा ग्लास पानी का दे दो" बीवी को बोला.....  "बच्चे बहुत तंग कर रहे हैं दो मिनट बस" वह बोली .... बेचारी सारा दिन काम करती है... लिहाज़ा वालदह को आवाज़ दी, वह किचन से बोलीं _ "बेटा आंटा गूंध रही हूं दस मिनट रुक जाओ" .... घर में एक और औरत भी थी... मेरी बहन.. पर उससे बात कोई नहीं करता... (मेरी जरूरतें पूरी नहीं करते.. मुझे यह चाहिए वह चाहिए.. हर वक्त मुझे और मेरी बीवी को लड़वाती रहती है).... इसलिए मैं दिल में सोच के खामोश हो गया.... साथ ही वालिद कमरे में आए, दो हजार रुपये ले गए नाश्ते व खाने के लिए कुछ देर में वापस आए... फल.. दूध.. अंडे.. ब्रेड.. काफी कुछ लाए... इसी लम्हे मैं किचन में गया _ मेरी बीवी ने फल काट के खुद भी खाया... एक अब्बू को भी काट के दिया _ कोई दो साल बाद तकरीबन मैं किचन में गया आज..... वालदह दूध गरम करने लगी...

"अर्धांगिनी", Ardhangini

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"अर्धांगिनी" घूमने का शौक किसे नहीं होता और ये तब और भी खुशनुमा बना जाता है जब किसी युवा जोड़े की शादी हुई हो और वह एकसाथ घूमने जाएं मोहन और सुधा की शादी को"अर्धांगिनी" भी बस महीना भर ही हुआ था कम्पनी से पूरे पंद्रह दिनों की छुट्टी मिली थी सो मोहन अपनी नवविवाहिता पत्नी सुधा को लेकर शिमला मनाली घूमने निकल पड़ा शिमला बस पहुंचकर दोनों बस स्टैंड से बाहर आएं ताकि वहां की खूबसूरत जगहों की टैक्सी द्वारा सैर की जाएं मगर कुछ टैक्सी वाले कम होने की वजह से वहां मौजूद टैक्सी वाले ज्यादा पैसे ज्यादा मांग रहे थे मोहन के कुछ दोस्त जो यहां पहले घूमकर जा चुके थे उन्होंने उसे बताया था अंजान शहर में अधिक खर्च कहीं मुसीबत में ना डाल दें इसलिए हर कोई संभलकर ही खर्च करता है तभी मोहन की नजर एक और जोड़े पर गयी शायद वो भी अधिक पैसे की वजह से बार बार दूसरी टैक्सी वाले से बात कर रहा था मोहन ने कुछ सोचकर उस जोड़े में से लड़के से बात की और कहा... देखो अलग अलग जाएंगे तो अधिक पैसे खर्च करने होंगे मगर यदि हम टैक्सी में एकसाथ चलें तो आधा आधा खर्च बंट जाएगा और हम दोनों की काफी हद तक की टेंशन दूर हो सक

"चिठ्ठी" chitthi

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  "चिठ्ठी" शेखर चार बहनों का इकलौता और सबसे छोटा भाई था। चारों बहनों की शादी हो चुकी थी। बीमारी के वजह से माता-पिता का निधन हो चुका था। चारों बहनों ने अपनी इकलौते भाई के लिए एक से बढ़कर एक लड़कियां ढूंढी। लेकिन शेखर हर बार कोई ना कोई बहाना बना देता और शादी के लिए मना कर देता। बहनें परेशान हो चुकी थीं। इस बार राखी पर अपने भाई से साफ-साफ बात कर लेने की ठान कर चारों मायके आई... यही एक ऐसा त्योहार होता था जब चारों बहने मायके आती थी। राखी बांधने का काम पूरा होने बाद चारों बहनें शेखर को घेरकर बैठ गई और एक-एक कर सवाल पर सवाल करने लगी कि वो क्यों किसी लड़की को पसंद नहीं कर रहा। परेशान होकर शेखर ने बता ही दिया कि वो अपने ऑफिस की एक लड़की पायल से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है। पायल एक अलग जाति से थी बहनों ने ऐतराज जताया कि उनके घर में ये सब नहीं चलता। दूसरी बहन बोली कि "हम अपने ससुराल में क्या जवाब देंगे। तीसरी बोली "अगर तुमने ऐसा किया तो हम समझेंगे हमारा मायका अब नहीं रहा। उसे लगा ऐसा कहने पर शेखर शायद अपना विचार बदल ले। शेखर जो बचपन से ही ज़िद्दी था उसने अप

असली दहेज Asli dahej

किसी भी लड़की की सुदंरता उसके चेहरे से ज्यादा दिल की होती है। अशोक भाई ने घर में पैर रखा....‘अरी सुनती हो !' आवाज सुनते ही अशोक भाई की पत्नी हाथ में पानी का गिलास लेकर बाहर आई और बोली- "अपनी बिटिया का रिश्ता आया है, अच्छा-भला इज्जतदार सुखी परिवार है, लड़के का नाम युवराज है। बैंक में काम करता है।  बस बेटी हां कह दे तो सगाई कर देते हैं." बेटी उनकी एकमात्र लडकी थी. घर में हमेशा आनंद का वातावरण रहता था। कभी-कभार अशोक भाई की सिगरेट व पान मसाले के कारण उनकी पत्नी और बेटी के साथ कहा-सुनी हो जाती थी, लेकिन अशोक भाई मजाक में टाल देते थे। बेटी खूब समझदार और संस्कारी थी। S.S.C पास करके टयूशन व सिलाई आदि करके पिता की मदद करने की कोशिश करती रहती थी। अब तो बेटी ग्रेजुएट हो गई थी और नौकरी भी करती थी, लेकिन अशोक भाई उसकी पगार में से एक रुपया भी नही लेते थे। रोज कहते थे ‘बेटी यह पगार तेरे पास रख तेरे भविष्य में तेरे काम आएगी।' दोनों घरों की सहमति से बेटी और युवराज की सगाई कर दी गई और शादी का मुहूर्त भी निकलवा दिया गया. अब शादी के पन्द्रह दिन और बाकी थे. अशोक भाई ने बेटी को पास में बिठ

पहला सुख निरोगी काया: pahla sukh nirogi kaya

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एक बार की बात है एक गॉव में एक धनी व्यक्ति रहता था। उसके पास पैसे की कोई कमी नहीं थी लेकिन वह बहुत ज़्यादा आलसी था। अपने सारे काम नौकरों से ही करता था और खुद सारे दिन सोता रहता या अययाशी करता था। वह धीरे धीरे बिल्कुल निकम्मा हो गया था| उसे ऐसा लगता जैसे मैं सबका स्वामी हूँ क्यूंकी मेरे पास बहुत धन है मैं तो कुछ भी खरीद सकता हूँ। यही सोचकर वह दिन रात सोता रहता था| लेकिन कहा जाता है की बुरी सोच का बुरा नतीज़ा होता है। बस यही उस व्यक्ति के साथ हुआ। कुछ सालों उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसका शरीर पहले से शिथिल होता जा रहा है उसे हाथ पैर हिलाने में भी तकलीफ़ होने लगी यह देखकर वह व्यक्ति बहुत परेशान हुआ। उसके पास बहुत पैसा था उसने शहर से बड़े बड़े डॉक्टर को बुलाया और खूब पैसा खर्च किया लेकिन उसका शरीर ठीक नहीं हो पाया। वह बहुत दुखी रहने लगा| एक बार उस गॉव से एक साधु गुजर रहे थे उन्होने उस व्यक्ति की बीमारी के बारे मे सुना। सो उन्होनें सेठ के नौकर से कहा कि वह उसकी बीमारी का इलाज़ कर सकते हैं। यह सुनकर नौकर सेठ के पास गया और साधु के बारे में सब कुछ बताया। अब सेठ ने तुरंत साधु को अपने यहाँ बुलवाया

पिता का आशीर्वाद / pita ka aashirvad

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एक व्यापारी की यह सत्य घटना है। जब मृत्यु का समय न्निकट आया तो पिता ने अपने एकमात्र पुत्र धनपाल को बुलाकर कहा कि..  बेटा मेरे पास धन-संपत्ति नहीं है कि मैं तुम्हें विरासत में दूं। पर मैंने जीवनभर सच्चाई और प्रामाणिकता से काम किया है।  तो मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि, तुम जीवन में बहुत सुखी रहोगे और धूल को भी हाथ लगाओगे तो वह सोना बन जायेगी। बेटे ने सिर झुकाकर पिताजी के पैर छुए। पिता ने सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और संतोष से अपने प्राण त्याग कर दिए। अब घर का खर्च बेटे धनपाल को संभालना था। उसने एक छोटी सी ठेला गाड़ी पर अपना व्यापार शुरू किया।  धीरे धीरे व्यापार बढ़ने लगा। एक छोटी सी दुकान ले ली। व्यापार और बढ़ा। अब नगर के संपन्न लोगों में उसकी गिनती होने लगी। उसको विश्वास था कि यह सब मेरे पिता के आशीर्वाद का ही फल है।  क्योंकि, उन्होंने जीवन में दु:ख उठाया, पर कभी धैर्य नहीं छोड़ा, श्रद्धा नहीं छोड़ी, प्रामाणिकता नहीं छोड़ी इसलिए उनकी वाणी में बल था।  और उनके आशीर्वाद फलीभूत हुए। और मैं सुखी हुआ। उसके मुंह से बारबार यह बात निकलती थी।  एक दिन एक मित्र ने पूछा: तुम्हारे पिता में इतन

जीवन चक्र : देश खतरे मे है कहानी / jivan chakra : desh kahtre me hai/ Motivational story

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एक चूहा एक व्यापारी के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस व्यापारी और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं. चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है.उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक चूहेदानी थी. ख़तरा भाँपनेपर उस ने पिछवाड़े में जा कर कबूतर को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है. कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौनसा उस में फँसना है? निराश चूहा ये बात मुर्गे को बताने गया.मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा... जा भाई..ये मेरी समस्या नहीं है. हताश चूहे ने बाड़े में जा कर बकरे को ये बात बताई... और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा. उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई जिस में एक ज़हरीला साँप फँस गया था.अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस व्यापारी की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डंस लिया.तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने वैद्य को बुलवाया. वैद्य ने उसे कबूतर का सूप पिलाने की सलाह दी.कबूतर अब पतीले में उबल रहा था ।खबर सुनकर उस व्यापारी के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन *मुर्गे को काटा गया*.कुछ दिनों बाद उस व्याप

सच्चाई और ईमानदारी best story

एक बढ़ई किसी गांव में काम करने गया, लेकिन वह अपना हथौड़ा साथ ले जाना भूल गया। उसने गांव के लोहार के पास जाकर कहा, 'मेरे लिए एक अच्छा सा हथौड़ा बना दो। मेरा हथौड़ा घर पर ही छूट गया है।' लोहार ने कहा, 'बना दूंगा पर तुम्हें दो दिन इंतजार करना पड़ेगा। हथौड़े के लिए मुझे अच्छा लोहा चाहिए। वह कल मिलेगा।' दो दिनों में लोहार ने बढ़ई को हथौड़ा बना कर दे दिया। हथौड़ा सचमुच अच्छा था। बढ़ई को उससे काम करने में काफी सहूलियत महसूस हुई। बढ़ई की सिफारिश पर एक दिन एक ठेकेदार लोहार के पास पहुंचा। उसने हथौड़ों का बड़ा ऑर्डर देते हुए यह भी कहा कि 'पहले बनाए हथौड़ों से अच्छा बनाना।' लोहार बोला, 'उनसे अच्छा नहीं बन सकता। जब मैं कोई चीज बनाता हूं तो उसमें अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखता, चाहे कोई भी बनवाए।' धीरे-धीरे लोहार की शोहरत चारों तरफ फैल गई। एक दिन शहर से एक बड़ा व्यापारी आया और लोहार से बोला, 'मैं तुम्हें डेढ़ गुना दाम दूंगा, शर्त यह होगी कि भविष्य में तुम सारे हथौड़े केवल मेरे लिए ही बनाओगे। हथौड़ा बनाकर दूसरों को नहीं बेचोगे।' लोहार ने इनकार कर दिया और कहा, &#

क्या है रामायण जानिए आसान शब्दों मे

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रामायण महाकाव्य, भारतीय साहित्य की एक प्रमुख प्रसिद्धि है जो हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पुराणों में से एक है। इस महाकाव्य के लेखक महर्षि वाल्मीकि माने जाते हैं, जिन्होंने भगवान श्रीराम की जीवनी को कविता के रूप में रचा। रामायण में सम्पूर्ण मानवीय अनुभवों को संक्षेप में दिखाया गया है और यह एक पूर्णतापूर्ण कथा है जिसमें साधारण मानवीय गुणों की प्रशंसा की गई है। रामायण की कथा में भगवान राम का जन्म, उनकी बाल्यावस्था, वनवास, सीता हरण, हनुमान और वानर सेना की मदद, लंका यात्रा, राक्षसों से युद्ध, सीता की वापसी, और अयोध्या में उनकी राज्याभिषेक आदि अहम् घटनाएं सम्मिलित हैं। इस कथा का मूलभूत संदेश यह है कि धर्म का पालन करना, सच्ची मित्रता और परिवार के प्रति वचनबद्धता जैसे मानवीय मूल्यों का पालन करने के माध्यम से जीवन को सफलता की ओर ले जाता है।

श्री शनि चालीसा/ shree shani chalisa/ जयति जयति शनिदेव दयाला/ jayti jayti shanidev dayala/ jay ganesh girija suvan/ जय गणेश गिरिजा सुवन

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श्री शनि चालीसा     दोहा जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल। दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥ जयति जयति शनिदेव दयाला।  करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥ चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।  माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥ परम विशाल मनोहर भाला।  टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥ कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।  हिय माल मुक्तन मणि दमके॥ कर में गदा त्रिशूल कुठारा।  पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥ पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन।  यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥ सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।  भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥ जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं।  रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥ पर्वतहू तृण होई निहारत।  तृणहू को पर्वत करि डारत॥ राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो।  कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥ बनहूँ में मृग कपट दिखाई।  मातु जानकी गई चुराई॥ लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।  मचिगा दल में हाहाकारा॥ रावण की गति-मति बौराई।  रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥ दियो कीट करि कंचन लंका।  बजि बजरंग बीर की डंका॥ नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।  चित्र मयूर निगलि गै हारा॥ हार नौलखा लाग्यो चोरी।  ह

असली धन(asli dhan)

असली धन एक सेठ के यहां कई नौकर काम करते थे। उनमें शंभु नामक एक रसोइया भी था। वह सेठ जी के परिवार और सभी नौकरों का भोजन एक साथ बनाता था। एक दिन सेठ जी जब खाना खाने लगे तो उन्हें सब्जी मीठी लगी। वह समझ गए कि शंभु ने भूल से सब्जी में नमक की जगह चीनी डाल दी है। मगर सेठ जी ने उसके सामने बड़े चाव से सारी सब्जी खाई। शंभू को कुछ पता नहीं चला। खाने के बाद सेठ जी ने शंभु से कहा, 'शायद तुम परेशान हो। क्या बात है शंभू ने कहा, 'पत्नी कई दिनों से बीमार है। यहां से जाने के बाद उसकी देखभाल करने में ही सारी रात बीत जाती है।' सेठ ने उसे कुछ पैसे देते हुए कहा, 'तुम अभी घर चले जाओ और पत्नी जब पूरी तरह स्वस्थ हो जाए तभी आना। और पैसे की जरूरत पड़े तो आकर ले जाना।' शंभु चला गया। उसके जाने के बाद सेठानी ने कहा, 'आप ने उसे जाने क्यों दिया। अभी तो और लोगों ने खाना तक नहीं खाया है। सारा काम पड़ा है।' सेठ जी बोले, 'उसके मन में अपने से ज्यादा हमारी चिंता है तभी उसने एक दिन छुट्टी नहीं की। आज उसने सब्जी में नमक की जगह चीनी डाल दी है। मैं उसके सामने सब्जी खा गया ताकि उसे कुछ पता न चले

कर्मों की कहानी, इंसान के कर्म कभी भी उसका पीछा नहीं छोड़ते,

  महाभारत लघु परिचय कर्म फल कभी पीछा नहीं छोड़ते..!! दुर्योधन ने एक अबला स्त्री को देख कर अपनी जंघा थापी थी, तो उसकी जंघा खंड कर दी गयी... दु:शासन ने छाती थापी तो उसकी छाती खंड कर दी गयी.. महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखा... भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे जब-तक सब देख नहीं लिया, तब-तक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर

राजा की कहानी

  राजा के दरबार में. एक आदमी नौकरी मांगने के लिए आया! तो उस व्यक्ति से उसकी क़ाबलियत पूछी गई।  तो वो बोला- मैं आदमी हो चाहे जानवर, उसकी शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ.! राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया। कुछ ही दिन बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा, तो उसने कहा.. घोड़ा नस्ली नही है.! राजा को हैरानी हुई,  उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा, उसने बताया घोड़ा नस्ली तो हैं, पर इसके पैदा होते ही इसकी मां मर गई थी। इसलिए ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला बढ़ा है। राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं?? "उसने कहा- "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके खाता है, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता है। राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ, उसने नौकर के घर अनाज ,घी, मुर्गे, और ढेर सारी बकरियां बतौर इनाम भिजवा दिए। और अब उसे रानी के महल में तैनात कर दिया। कुछ दिनो बाद राजा ने उससे रानी के बारे में राय मांगी, उसने कहा,  "तौर तरीके तो रानी जैस

इसे कहते हैं चाहत और कसक

  इसे कहते है कसक ओर चाहत ट्रेन चलने को ही थी कि अचानक कोई जाना पहचाना सा चेहरा जर्नल बोगी में आ गया। मैं अकेली सफर पर थी। सब अजनबी चेहरे थे। स्लीपर का टिकिट नही मिला तो जर्नल डिब्बे में ही बैठना पड़ा। मगर यहां ऐसे हालात में उस शख्स से मिलना। जिंदगी के लिए एक संजीवनी के समान था। जिंदगी भी कमबख्त कभी कभी अजीब से मोड़ पर ले आती है। ऐसे हालातों से सामना करवा देती है जिसकी कल्पना तो क्या कभी ख्याल भी नही कर सकते । वो आया और मेरे पास ही खाली जगह पर बैठ गया। ना मेरी तरफ देखा। ना पहचानने की कोशिश की। कुछ इंच की दूरी बना कर चुप चाप पास आकर बैठ गया। बाहर सावन की रिमझिम लगी थी। इस कारण वो कुछ भीग गया था। मैने कनखियों से नजर बचा कर उसे देखा। उम्र के इस मोड़ पर भी कमबख्त वैसा का वैसा ही था। हां कुछ भारी हो गया था। मगर इतना ज्यादा भी नही। फिर उसने जेब से चश्मा निकाला और मोबाइल में लग गया। चश्मा देख कर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ। उम्र का यही एक निशान उस पर नजर आया था कि आंखों पर चश्मा चढ़ गया था। चेहरे पर और सर पे मैने सफेद बाल खोजने की कोशिश की मग़र मुझे नही दिखे। मैंने जल्दी से सर पर साड़ी का पल्लू डाल

देश की बेटियों के लिए दिल को झकझोर कर रख देने वाली कहानी,,, heart touching story

 ट्रेन के ए.सी. कम्पार्टमेंट में मेरे सामने की सीट पर बैठी लड़की ने मुझसे पूछा " हैलो, क्या आपके पास इस मोबाइल की सिम निकालने की पिन है??"  उसने अपने बैग से एक फोन निकाला, वह नया सिम कार्ड उसमें डालना चाहती थी। लेकिन सिम स्लॉट खोलने के लिए पिन की जरूरत पड़ती है, जो उसके पास नहीं थी। मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और अपने क्रॉस बैग से पिन निकालकर लड़की को दे दी। लड़की ने थैंक्स कहते हुए पिन ले ली और सिम डालकर पिन मुझे वापिस कर दी। थोड़ी देर बाद वो फिर से इधर उधर ताकने लगी, मुझसे रहा नहीं गया.. मैंने पूछ लिया "कोई परेशानी??" वो बोली सिम स्टार्ट नहीं हो रही है, मैंने मोबाइल मांगा, उसने दिया। मैंने उसे कहा कि सिम अभी एक्टिवेट नहीं हुई है, थोड़ी देर में हो जाएगी। एक्टिव होने के बाद आईडी वेरिफिकेशन होगा, उसके बाद आप इसे इस्तेमाल कर सकेंगी। लड़की ने पूछा, आईडी वेरिफिकेशन क्यों?? मैंने कहा " आजकल सिम वेरिफिकेशन के बाद एक्टिव होती है, जिस नाम से ये सिम उठाई गई है, उसका ब्यौरा पूछा जाएगा बता देना" लड़की बुदबुदाई "ओह्ह " मैंने दिलासा देते हुए कहा "इसमें कोई परेशानी