शायद कोई मर्द यह लिखने की हिम्मत न करे, /Sayad koi mard yah likhne ki himmat na kre
शायद कोई मर्द यह लिखने की हिम्मत न करे.....
आंख खुली... कमरे का दरवाज़ा खुला था... बाहर मेरी दुनिया... यानी बच्चे और बीवी बैठे कुछ खा रहे थे... उन्हें देख कर आधी बीमारी जाती महसूस हुई _ मैने मुस्कुरा के उन्हें देखा _ प्यास लगी थी...."फैजा ग्लास पानी का दे दो" बीवी को बोला.....
"बच्चे बहुत तंग कर रहे हैं दो मिनट बस" वह बोली
.... बेचारी सारा दिन काम करती है...
लिहाज़ा वालदह को आवाज़ दी, वह किचन से बोलीं _ "बेटा आंटा गूंध रही हूं दस मिनट रुक जाओ"
.... घर में एक और औरत भी थी... मेरी बहन.. पर उससे बात कोई नहीं करता... (मेरी जरूरतें पूरी नहीं करते.. मुझे यह चाहिए वह चाहिए.. हर वक्त मुझे और मेरी बीवी को लड़वाती रहती है)....
इसलिए मैं दिल में सोच के खामोश हो गया.... साथ ही वालिद कमरे में आए,
दो हजार रुपये ले गए नाश्ते व खाने के लिए कुछ देर में वापस आए...
फल.. दूध.. अंडे.. ब्रेड.. काफी कुछ लाए... इसी लम्हे मैं किचन में गया _
मेरी बीवी ने फल काट के खुद भी खाया... एक अब्बू को भी काट के दिया _
कोई दो साल बाद तकरीबन मैं किचन में गया आज.....
वालदह दूध गरम करने लगी... साथ ही मेरी बहन किचन में आई मेरे कपड़े स्त्री करते बीच में छोड़ के.... सरगोशी में वालदह से कुछ कहने लगी...
"मेरी बीवी के खिलाफ ही कुछ कह रही होगी" यह सोच कर मैने ध्यान किया......
"अम्मी....! हमारे लिए कुछ लाए हैं अब्बू?" उसने खुशी से पूछा.... मैने दिल में सोचा कितनी नाशुक्रि है....
इतना कुछ तो लाएं हैं.... यह फिर भी राज़ी नहीं _
क़यामत तो तब आई जब वालदह ने जवाब दिया
"नहीं.....!! बेटा हमारे लिए कुछ नहीं लाए..." मैं एक घूंट और पानी नहीं पी पाया... वह बस उदास हुई और किचन से चली गई... जैसे रोज़ की बात हो_
ठीक ही तो कहा था... दूध बच्चों का, फल बीवी का और नाश्ते का सामान हम भाईयों का...
मेरी पूरी तवज्जा अब उसकी तरफ थी, वह काम में लगी रही, बारह बजे के क़रीब वालदह ने उसे आवाज़ दी, नाश्ता कर लो बेटी, नाश्ते में क्या था, कल की एक पूरी... और एक आधी से भी कम रोटी... और रात का सालन... उन दोनों ने वही खाया...
नाश्ते के बाद वह कुछ देर के लिए अपने कमरे में चली गई... जब वापस निकली तो खुश.... मैं आज कोई दो साल बाद अपनी बहन को गौर से देखा... कमज़ोर बे जान सी... यकीनन उसे बाक़ी दिनों नयी भी कुछ नहीं दिया जाता था... तभी तो पहले पहल उसने अपना हक़ मांगा था, पर जवाब में कभी थप्पड़... कभी बेज्जती... अब वह बोलती ही नहीं थी.. बिल्कुल चुप.. न अब्बू से... न मुझसे _
खैर मैं उसके कमरे में गया... गर्मी महसूस हुई... पंखा लगाने लगा तो याद आया अम्मी ने बताया था दो महीने से पंखा खराब है... इतनी गर्मी में वह सोती कैसे होगी.. हैरत तब पड़ी जब कमरे में कोई बिस्तर नहीं था, मतलब वह सोफे पे सोती है.... मैं सोफे पे जा के बैठ गया.....
पास मेरी बहन का मोबाइल पड़ा था मैने उठाया.... काफी सहेलियों के मैसेज थे... एक नम्बर ऐसा था जिसपे अठारह सौ से ज़्यादा मैसेज भेजे और मौसूल कीए गए थे... यह कोई तीस पैंतीस साल का आदमी था.....
"कहां हैं आप"
"उफ़्फ़्फ़्फ जवाब दे भी दें"
"बोर हो रही हूँ... मैं किसी से बात करूँ"
"मैं अकेली क्या करूं"
यह मेरी बहन के दो दिन पहले के मैसेज थे मुझे शायद गुस्सा आया....
"गुडिया आप थोड़ी देर नाविल पढ लो मैं ज़रा मसरूफ हूँ" उसने कोई दस मैसेज के जवाब दिया हुआ था, ठीक है, मेरी बहन का जवाब था....
अब कुछ और मैसेज थे..... कैसी हो? चोट आई थी अब दर्द तो नहीं है?, खाना खाया? गर्मी बहुत है कुछ ठंडा पी लो, वह सारे सवालात जो हमें करने चाहिए थे.. वह अजनबी कर रहा था इन्हीं मैसेज से मुझे पता चला कि मेरी बहन को बुखार है दो हफ्तों से.. वह मेरी बहन से बातें करता रहा.. और यहां से बहुत मुनासिब जवाबात जाते रहे
आज के मैसेज में उस अजनबी शख्स ने कहा कुछ रक़म भेज रहा हूं.. कुछ शापिंग ही कर लो और दवा भी ले लो.... तुमने तो लेनी नहीं _
घर का काम करके बुर्क़ा पहन कर जाना.... अकेली न जाना.... बैंक में भेजवा दीए हैं पैसे... ले लेना, वह शख्स यकीनन हिन्दुस्तान में मुक़ीम नहीं था _ क्योंकि नम्बर सौदी अरब का था _
शदीद गुस्से में मैं बाहर निकला, बहन मुकम्मल काम में मसरूफ थी, फिर उसने वालदह को कहा ज़रा बाजार जाना है... और बुर्क़ा पहनने लगी, वालदह भी बगैर सवाल जवाब कीए तैयार होने लगी, वह जब भी बाजार जाती, मैने कभी किराया भी नहीं दिया, वालदह दरवाज़े तक गई तो मैंने आवाज़ दी, अम्मी....!! कुछ पैसे ले जाएं, अम्मी ने पलट कर देखा... तो नफरत से कहा...
हमें नहीं जरूरत तुम्हारे पैसों की
मतलब वालदह सब जानती थीं.. मैने पीछा किया.. वह वकाई बैंक गई..कुछ और दूकानों पर गई.. वालदह की दवा की ढेर सारी डिब्बियां ली... और वापस आ गयीं.......
"""" मैं यह नहीं कहता के हमेशा बीवी ग़लत होती है या बहन... मगर अगर उसे घर से तवज्जा मिलती.... वह किसी गैर से क्यों मिन्नतें करती के बात करो... बीवी को हम हर माह मअक़ूल खर्च देते हैं तो बहन को क्यों नहीं... बीवी को प्यार से देखते हैं बहन को क्यों नहीं... बीवी से ढेरों बातें करते हैं... बहन से क्यों नहीं........
इंसान को एक राह नज़र नहीं आती तो वह दूसरी तलाश करता है यह उसकी फितरत है""""
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