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जीवन का सच

 मैंने सुना है कि एक रात ऐसा हुआ, एक पति घर वापस लौटा थका—मादा यात्रा से। प्यासा था, थका था। आकर बिस्तर पर बैठ गया। उसने अपनी पत्नी से कहा कि पानी ले आ, मुझे बड़ी प्यास लगी है। पत्नी पानी लेकर आयी, लेकिन वह इतना थका—मादा था कि लेट गया, उसकी नींद लग गयी। तो पत्नी रातभर पानी का गिलास लिए खड़ी रही बिस्तर के पास। क्योंकि उठाए, तो ठीक नहीं, नींद टूटेगी। खुद सो जाए, तो ठीक नहीं, पता नहीं कब नींद टूटे और पानी की मांग उठे, क्योंकि पति प्यासा सो गया है। तो रातभर गिलास लिए खड़ी रही। सुबह पति की आंख खुली, तो उसने कहा, पागल, तू सो गयी होती! उसने कहा, यह संभव न था। तुम्हें प्यास थी, तुम कभी भी उठ आते! तो तू उठा लेती, पति ने कहा। उसने कहा, वह भी मुझसे न हो सका, क्योंकि तुम थके भी थे और तुम्हें नींद भी आ गयी थी। तो यही उचित था कि तुम सोए रहो, मैं गिलास लिए खड़ी रहूं। जब नींद खुलेगी, पानी पी लोगे। नहीं नींद खुलेगी, तो कोई हर्जा नहीं, एक रात जागने से कुछ बिगड़ा तो नहीं जाता है। यह बात पूरे गांव में फैल गयी। सम्राट ने गांव के उस पत्नी को बुलाकर बहुत हीरे—जवाहरातों से स्वागत किया। उसने कहा कि ऐसी प्रेम की धार

साँप की जीभ दो हिस्सों में क्यू होती है

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  दुनिया में तरह-तरह के सांप हैं . सबकी अपनी अलग-अलग विशेषताएं हैं. लेकिन, एक चीज है जो सभी सांपों में समान देखी जाती है, वह है जीभ. सांपों की जीभ आगे से दो हिस्से में बंटी होती है.  सांप की जीभ सदियों से वैज्ञानिकों के साथ लोगों के लिए चर्चा का विषय रही है, पर इसका एक धार्मिक कारण भी है. इस संबंध में हजारीबाग के सर्प मित्र मुरारी सिंह बताते हैं कि सांपों की जीव दो हिस्सों में बंटे होने के पीछे एक कथा मशहूर है. इसका वर्णन वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में मिलता है. कथा के अनुसार, महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थी. इन 13 में से एक पत्नी का नाम कद्रू था और एक का नाम विनिता था.मान्यता है कि सभी सांपों को कद्रू ने ही जन्म दिया था. ये सभी कद्रू और महर्षि कश्यप के पुत्र-पुत्रियां थे. वहीं, पत्नी विनीता को महर्षि कश्यप से गरुड़ पुत्र प्राप्त हुआ था. एक बार जंगल में कद्रू और विनीता ने एक सफेद घोड़े को देखा, उस घोड़े दोनों का ही मनमोह लिया.इसके बाद दोनों के बीच बहस छिड़ गई कि घोड़े की पूंछ सफेद है या काली. बहस के बाद दोनों के बीच शर्त लग गई कि जिसकी बात सच होगी,  वह इस शर्त जीत जाएगा. हारने वाली आ

कभी भी चोटी चोटी बातो को आधार बनाकर तलाक जैसा फैसला मत लेना

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  जब मेरी शादी हुई थी तो मेरी उम्र महज 22 साल थी  पतिदेव की उम्र 33 साल थी, शादी के शुरुवाती दिन में हमारे बीच सब अच्छा था, दिन में कितना भी झगड़ा हो लेकिन रात में पति को करीब पता देख हम दोनो भूल कर एक हो जाते  पहले तो मैंने घर वालों को मना किया क्यों की पति को उम्र ज्यादा थी पर घर वाले नहीं माने  समय के साथ रिश्तों में खटास आती है जो मेरे साथ भी होने लगा  अब क्यों की मैं सिर्फ 22 की था तो खाली होने के बाद मैं अपनी सहेलियों से बात करती और जोर जोर से हंसती थी  ये बात मेरी सास को बिलकुल पसंद नहीं थी उन्होंने बोला बेटा नया नया शादी हुआ है ससुर हैं जेठ हैं इनका लिहाज किया करो  लेकिन मैं आदत से मजबूर थी समय के साथ साथ मेरी सास मुझसे नफरत करने लगी और मुझे भी इसकी कोई परवाह नहीं थी  शादी के 1 साल बाद मेरे पति को काम से विदेश जाना हुआ जिसके लिए मैने भी बोला, तो उन्होंने बोला की मात्र 2 महीने के लिए जाना है कम्पनी सिर्फ मेरा पैसा देगी  लेकिन मुझे तो बस जाना था इसी बात को लेके हम दोनो में अनबन हो गई और मैं अपने मायके aagayi  फिर रोज हमारी लड़ाई इसी बात पर होती की मुझे भी साथ जाना है और वो बोलते

पाटण की रानी रुदाबाई

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  पाटण की रानी *रुदाबाई* जिसने सुल्तान बेघारा के सीने को फाड़ कर 👉#दिल निकाल लिया था, और कर्णावती शहर के बिच में टांग दिया था, ओर  👉धड से #सर अलग करके पाटन राज्य के बीचोबीच टांग दिया था।  गुजरात से कर्णावती के राजा थे, #राणा_वीर_सिंह_वाघेला( #सोलंकी ), ईस राज्य ने कई तुर्क हमले झेले थे, पर कामयाबी किसी को नहीं मिली, सुल्तान बेघारा ने सन् 1497 पाटण राज्य पर हमला किया राणा वीर सिंह वाघेला के पराक्रम के सामने सुल्तान बेघारा की 40000 से अधिक संख्या की फ़ौज  २ घंटे से ज्यादा टिक नहीं पाई, सुल्तान बेघारा जान बचाकर भागा।  असल मे कहते है सुलतान बेघारा की नजर रानी रुदाबाई पे थी, रानी बहुत सुंदर थी, वो रानी को युद्ध मे जीतकर अपने हरम में रखना चाहता था। सुलतान ने कुछ वक्त बाद फिर हमला किया।  राज्य का एक साहूकार इस बार सुलतान बेघारा से जा मिला, और राज्य की सारी गुप्त सूचनाएं सुलतान को दे दी, इस बार युद्ध मे राणा वीर सिंह वाघेला को सुलतान ने छल से हरा दिया जिससे राणा वीर सिंह उस युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुए।  सुलतान बेघारा रानी रुदाबाई को अपनी वासना का शिकार बनाने हेतु राणा जी के महल की ओर 1000

मन की आवाज

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मन की आवाज एक बुढ़िया बड़ी सी गठरी लिए चली जा रही थी। चलते-चलते वह थक गई थी। तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है। उसे देख बुढ़िया ने आवाज दी, ‘अरे बेटा, एक बात तो सुन।’ घुड़सवार रुक गया। उसने पूछा, ‘क्या बात है माई?’ बुढ़िया ने कहा, ‘बेटा, मुझे उस सामने वाले गांव में जाना है। बहुत थक ग ई हूं। यह गठरी उठाई नहीं जाती। तू भी शायद उधर ही जा रहा है।यह गठरी घोड़े पर रख ले। मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।’  उस व्यक्ति ने कहा, ‘माई तू पैदल है। मैं घोड़े पर हूं। गांव अभी बहुत दूर है। पता नहीं तू कब तक वहां पहुंचेगी। मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा। वहां पहुंचकर क्या तेरी प्रतीक्षा करता रहूंगा?’ यह कहकर वह चल पड़ा। कुछ ही दूर जाने के बाद उसने अपने आप से कहा, ‘तू भी कितना मूर्ख है। वह वृद्धा है, ठीक से चल भी नहीं सकती। क्या पता उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं। तुझे गठरी दे रही थी। संभव है उस गठरी में कोई कीमती सामान हो। तू उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता। चल वापस, गठरी ले ले। ‘ वह घूमकर वापस आ गया और बुढ़िया से बोला, ‘माई, ला अपनी गठरी। मैं ले चलता हूं। गांव में रुककर तेरी राह देखूंगा

कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करे

एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया। दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी। दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले... हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं.. बोले... दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है..  बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?" कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं.. घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...लड़की भी उदास हो गयी... खैर..  अगले दिन समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी.. कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा" दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए.. दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें..  लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे बात करनी है!... दीनदय

छत्रपति संभाजी महाराज द्वारा औरंगजेब को लिखा पत्र

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ये साल 1680 था जब औरंगजेब को पता चला कि छत्रपति शिवाजी महाराज का देहांत हो गया है। तो वो दक्षिण जीतने की इच्छा लिए आगरा से उठकर औरंगाबाद पहुंच गया। औरंगजेब को एक दिन निजामशाही और दो दिन आदिलशाही को खत्म करने में लगे लेकिन सामना होना था 23 साल के नए छत्रपति संभाजी से। इस समय औरंगजेब दुनिया का सबसे ताकतवर राजा था। वो ना सिर्फ विश्व के सबसे बड़ा भू-भाग पर राज कर रहा था उसके पास विश्व की सबसे बड़ी पांच लाख की सेना थी।  अगले 9 सालों में संभाजी ने पुर्तगालियों के खिलाफ 15 और मुगलों के खिलाफ 69 छोटे-बड़े युद्ध जीते। मराठा साम्राज्य की जो सीमा उनके पिता छोड़ कर गए थे वो उससे कई गुना बढ़ाकर आगे ले गए। गुजरात से लेकर गोवा तक भगवा फहर रहा था। साल 1689 में सगे साले की गद्दारी के चलते छत्रपति अपनी पत्नी और बच्चे समेत बंधक बनाए गए। उन्हें जोकर के कपड़े पहनाकर परेड कराते हुए मुगल खेमे में लाया गया। औरंगजेब ने जिंदा रहने का दो रास्ते दिए पहला पूरा मराठा साम्राज्य मुगलों को सौंप दिया जाए या इस्लाम स्वीकार कर लिया जाए। बंधक बने संभाजी का जवाब था अगर औरंगजेब अपनी बेटी की निकाह भी मुझसे करा दे तो भी इस्ला