बाप सेर तो बेटा सवा सेर /bap ser to beta sawa ser

 रात को अचानक ही बुखार आ गया है। paracetamol लेकर सोने की हरसंभव कोशिश की लेकिन आँखों से नींद ऐसे ही गायब है जैसे कभी पढ़ा था कि गधे के सिर से सींग गायब हुए थे।

 खैर मुद्दा वो नहीं है। लेटे लेटे बचपन का एक किस्सा याद आ गया है। तब भी एक दिन ऐसे ही बुखार आया था।

  साल 1998 के आसपास रहा होगा। उम्र करीब 12 साल की थी। रात के करीब 8-9 बजे होंगे जब पापा ड्यूटी से घर आये थे। उस वक्त पापा अक्सर घर देर से ही आते थे। उस दिन आये तो उनके हाथ में 3-4 कॉमिक्स का बण्डल था। हमारे यहाँ कॉमिक्स को बच्चों के लिए अच्छा नहीं समझा जाता था। कभी कभार पापा अपने पढ़ने के लिए कॉमिक्स लाते तो सबसे छुप छुपाकर हम भी पढ़ लिया करते थे। पापा ने कॉमिक्स मेज पर रखी और खाना खाने बैठे। मेरी नज़र ज़ाहिर है कॉमिक्स पर ही टिकी थी लेकिन पापा के होते हुए उठाने की मेरी हिम्मत नहीं हो सकती थी। मन में लड्डू बनते थे और फूटते थे। तरह तरह के सवाल ( कौनसे हीरो की कॉमिक्स होगी? स्टोरी कैसी होगी? इत्यादि) दिमाग में घुमड़ते थे। दूर से ही कवर को घूर घूरकर देखता था कि कुछ अंदाज़ा मिले मगर सब बेकार। यहां तक कि सोने के लिए बिस्तर पर लेट गये पर नींद कहां से आये! कॉमिक्स पढ़नी थी तो उसके लिए एक फुलप्रूफ प्लान बनाना था कि मेज पर पड़ी ये कॉमिक्स हाथों तक कैसे पंहुचे? सुबह उठूंगा तो तैयार होकर स्कूल जाना है, उस टाइम कॉमिक्स नहीं छू सकता। हां स्कूल से वापस आने पर पापा घर पर नहीं होंगे। मम्मी अपना काम निपटाकर दोपहर में आराम करने लेटेंगी। बस वही वक्त होगा जब मैं कॉमिक्स पर झपट्टा मारूँगा और छत के किसी कोने में छुपकर आराम से पढूंगा। बस यही सब सोचते सोचते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।

   सुबह उठा तो फिर दिमाग कॉमिक्स पर। ना नहाने धोने में ध्यान ना नाश्ता करने का मन। स्कूल जाना ऐसे लग रहा था मानो किसी ने पहाड़ उठाने को कह दिया हो। पैर जैसे उठना ही नहीं चाहते थे। मम्मी को कुछ गड़बड़ लगी। अचानक से उन्होंने माथा छुआ और बोली "अरे इसे तो तेज़ बुखार है।" पापा ने भी देखा। डॉक्टर से दवा लेकर आये। स्कूल जाना भी कैंसिल हो गया। मुझे लिटा दिया गया और मम्मी ताज़े पानी की पट्टियां लेकर माथे पर रखने लगीं। पता चला कि पापा भी छुट्टी करके घर पर ही रुकेंगे। मुझे दवाई देकर सो जाने की हिदायत दी गई, पर अब नींद कहां से आये। साला आधी रात तक जागकर बनाया मेरा फुलप्रूफ प्लान चौपट हुआ पड़ा था और मैं सो जाऊं!

   आधा घंटा छत की तरफ टकटकी लगाए लेटे हुए गुज़रा। फिर मम्मी ने डांटा "सोना है कि नहीं?"

   मैं चुप था। अब मम्मी पास आई और थोड़ा प्यार से पूछा "कुछ चाहिए क्या?"

   मैंने धीरे से सिर उठाकर मेज की तरफ इशारा किया "वो कॉमिक्स।"

   मुझे पता था कि अब ज़बरदस्त डांट पड़ने वाली है, लेकिन यहां वो हुआ जो मैंने सोचा नहीं था। मम्मी ने पापा के पास जाकर उन्हें बताया "कॉमिक्स मांग रहा है जो आप रात लेकर आए थे।"

   और फिर पापा की आवाज़ " दे दो, लेटे लेटे पढ़ लेगा।"

   ऐसा लग रहा था शायद सुबह हुई ही नहीं है और मैं अभी भी सपने में ही हूँ। मम्मी ने सारी कॉमिक्स उठाई और बिस्तर के सिरहाने लाकर रख दीं।

   अब मुझे कोई दुख नहीं था। बुखार भी कुछ गधे के सींग की तरह ही गायब हो चुका था।

   बुखार आज फिर आया है। काश मम्मी उस दिन की तरह ही कॉमिक्स का एक बण्डल लाकर सिरहाने रख जाती!


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्री हनुमान चालीसा (Shri Hanuman Chalisa)

अम्बे माँ की आरती (Ambe maa ki aarti)

Bal Samay Ravi Bhaksha Liyo/बाल समय रवि भक्ष लियो तब / संकटमोचन हनुमान अष्टक:-