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श्री बटुक भैरव जी आरती/ shree batuk bhairav ji maharaj ki aarti/ bheru ji ki aarti/जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा/ BATUK BHAIRAV JI MAHARAJ MANTRA/ बटुक भैरव मंत्र

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श्री बटुक भैरव जी आरती जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा । जय काली और गौरा देवी कृत सेवा ॥ तुम्हीं पाप उद्धारक, दुःख सिन्धु तारक। भक्तों के सुख कारक, भीषण वपु धारक ॥ वाहन श्वान विराजत कर त्रिशुल धारी। महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयहारी॥ तुम बिन देवा सेवा सफल नही होवे। चौमुख दीपक दर्शन दुःख सगर खोवे॥ तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावली तेरी। कृपा करिये भैरव करिये नहीं देरी॥ पांव घुंघरु बाजत अरु डमरु डमकावत। बटुकनाथ बन बालक जन मन हरषावत ॥ बटुकनाथ की आरती जोकोई नर गावे। कहे धरणीधर नर मनवंछित फल पावे ॥ श्री बटुक भैरव जी महाराज बटुक भैरव भगवान महाकाल का बाल रूप माना जाता है जिसे आनंद भैरव भी कहा जाता है। बटुक भैरव की पूजा और आराधना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। बटुक भैरव जी महाराज एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनकी साधना से शनि का प्रकोप भी शांत होता है। आप सभी जानते होंगे कि भैरव जी की सवारी कुत्ते को माना जाता है, इसीलिए कभी भी कुत्ते को दुत्कारे नहीं और उसे भरपेट भोजन कराएं। श्री बटुक भैरव जी महाराज भैरव बाबा की पूजा आराधना करने से साधक अपनी अकाल मौत से बच सकते हैं और भैरव बाबा उन्हें

"श्री हनुमान बजरंग बाण" / shree hanuman bajrang baan/ जय हनुमंत संत हितकारी/निश्चय प्रेम प्रतीति ते/ jay hanumant sant hitkari / godavari hanumanji maharaj

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श्री हनुमान बजरंग बाण का पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। रोज सुबह स्नान करने के पश्चात्‌ भगवान की पूजा करने के पश्चात्‌ बैठ कर श्री हनुमान बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए। Godavari hanuman ji maharaj kota "श्री हनुमान बजरंग बाण"   निश्चय प्रेम प्रतीति ते , विनय करें सनमान ।। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान ।। जय हनुमंत संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु विनय हमारी ।। जन के काज बिलंब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै । । जैसे कृदि सिंधु के पारा । सुरसा बदन पैठि विस्तारा । । आगे जाय लंकनी रोका । मारेहु लात गई सुरलोका ।। जाय बिभीषन को सुख दीन्हा । सीता निरीख परमपद लीन्हा ।। बाग उजारि सिंधु महँ बौरो । अति आतुर जमकातर तोरा ।। अक्षय कुमार मारि संहारा । लूम लपेटि लंक को जारा । । लाह समान लंक जर गई । जय जय धुनि सुरपुर नभ भई । । अब बिलंब केहि कारन स्वामी । कृपा करहु उर अंतरयामी ।। जय जय लखन प्रान के दाता । आतुर हवै दुख करहु निपाता ।। जै हनुमान जयति बल सागर । सुर-समूह-समरथ भटनागर ।। ॐ हनु हनु हनु हनुमत हठीले । बैरिहि मारू बज्र की कीले ।। ॐ ह्री ही ही हनुमंत कपीसा । ॐ ह

shree durga chalisa / namo namo durge sukh karni / श्री दुर्गा चालीसा / नमो नमो दुर्गे सुख करनी

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आज हम आपके लिए लेकर आए हैं "पवित्र श्री दुर्गा चालीसा" नवरात्रि के दिनों में इसका पाठ करने से मां दुर्गा अपने भक्तों पर प्रसन्न होती है और हर तरह के संकट दूर करती है। नवरात्रि के अलावा भी दुर्गा चालीसा का रोजाना पाठ करना चाहिए । ऐसा करने से मां दुर्गा की कृपा हमेशा अपने भक्त पर बनी रहती है। श्री दुर्गा चालीसा नमो नमो दुर्गे सुख करनी, नमो नमो दुर्गे दुख हरनी। निरंकार है ज्योति तुम्हारी, तिहूं लोक फैली उजियारी।। शशि ललाट मुख महा विशाला, नेत्र लाल भृकुटी विकराला। रूप मातु को अधिक सुहावे, दरश करत जन अति सुख पावे।। तुम संसार शक्ति लय कीना, पालन हेतु अन्न धन दीना। अन्नपूर्णा हुई जग पाला, तुम ही आदि सुंदरी बाला।। प्रलय काल सब नाशन हारी, तुम गौरी शिव शंकर प्यारी। शिव योगी तुम्हरे गुण गावे, ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावे।। रूप सरस्वती को तुम धारा, दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा। धर्यो रूप नरसिंह को अंबा, परगट भई फाडकर खंबा।। रक्षा करी प्रहलाद बचायो, हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो । लक्ष्मी रूप धरो जग माही, श्रीनारायण अंग समाही।। क्षीर सिंधु में करत विलासा, दया सिंधु दीजे मन आसा। हिंगलाज

shree hanuman stavan / श्री हनुमत् स्तवन /atulit baldham/अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं / मनोजवं मारुततुल्यवेगं / manojvam maruttulyavegm

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 श्री हनुमत् स्तवन  श्री हनुमान जी के स्तवन का पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। रोज सुबह स्नान करने के पश्चात्‌ भोजन करने से पहले भगवान की पूजा करने के पश्चात्‌ बैठ कर हनुमान जी के स्तवन का पाठ करना चाहिए। इसका पाठ करने से हनुमान जी जल्दी ही प्रसन्न होते हैं और उन पर अपनी कृपा दृष्टी बरसातें है। श्री हनुमत् स्तवन सोरठा प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन । जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ।। अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् । सकलगुणनिधानं वानराणांधिशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि। । गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम् रामायणमहामालारत्नंवन्देऽनिलात्मजम्। अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम् कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लंकाभयंकरम्।।   उल्लङ्घ्य सिन्धोः सलिलं सलीलं यः शोकह्वनिं जनकात्मजायाः। आदाय तेनैव ददाह लङ्कां नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम।।  मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ।। आञ्जनेयमतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीयविग्रहम् । पारिजाततरुमूलवासिनं भावयामि पवमाननन्दनम् ।। यत्र यत्र रघुनाथकीर

Ganesh ji mantra/ गणेश जी मंत्र /ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः/vakra tund mahakay suryakoti samprapha

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  गणेश जी मंत्र हम सभी जानते हैं कि गणेश जी महाराज महादेव और माता पार्वती की संतान हैं। एक बार जब माता पार्वती अपने पुत्र के वियोग में दुखी थी तो उन्होंने स्नान करते समय अपने शरीर से जो मेल निकाला था, उस मेल से एक आकृति बनाकर उस आकृति मैं जान डाल दी और तभी से गणेश जी का जन्म हुआ। गणेश जी शुरू से ही इस रूप में नहीं थे इसके पीछे भी एक कहानी है, एक बार जब महादेव माता पार्वती से मिलने आए उस समय माता पार्वती स्नान कर रही थी औरमाता पार्वती ने गणेश जी से कहा था कि किसी को भी अंदर मत आने देना और उसी समय जब महादेव आए तो उन्होंने गणेश से कहा कि मुझे अंदर जाना है लेकिन गणेश जी ने माता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। तब भगवान शंकर क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी पर प्रहार किया और उनकी गर्दन धड़ से अलग हो गई। और फिर उनको जीवित करने के लिए एक हाथी का सिर लगाया गया था तभी से उनका नाम गजानन पड़ गया। और उस समय सभी देवताओं ने उन्हें वरदान दिए और उनमें से एक वरदान यह था कि गणेश जी को सर्वप्रथम पूजा जाएगा। मंत्र इस प्रकार है ... ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।