Ganesh ji mantra/ गणेश जी मंत्र /ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः/vakra tund mahakay suryakoti samprapha

 गणेश जी मंत्र

हम सभी जानते हैं कि गणेश जी महाराज महादेव और माता पार्वती की संतान हैं।

एक बार जब माता पार्वती अपने पुत्र के वियोग में दुखी थी तो उन्होंने स्नान करते समय अपने शरीर से जो मेल निकाला था, उस मेल से एक आकृति बनाकर उस आकृति मैं जान डाल दी और तभी से गणेश जी का जन्म हुआ।




गणेश जी शुरू से ही इस रूप में नहीं थे इसके पीछे भी एक कहानी है, एक बार जब महादेव माता पार्वती से मिलने आए उस समय माता पार्वती स्नान कर रही थी औरमाता पार्वती ने गणेश जी से कहा था कि किसी को भी अंदर मत आने देना और उसी समय जब महादेव आए तो उन्होंने गणेश से कहा कि मुझे अंदर जाना है लेकिन गणेश जी ने माता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। तब भगवान शंकर क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी पर प्रहार किया और उनकी गर्दन धड़ से अलग हो गई। और फिर उनको जीवित करने के लिए एक हाथी का सिर लगाया गया था तभी से उनका नाम गजानन पड़ गया। और उस समय सभी देवताओं ने उन्हें वरदान दिए और उनमें से एक वरदान यह था कि गणेश जी को सर्वप्रथम पूजा जाएगा।

मंत्र इस प्रकार है ...


ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।


Om vakratund mahakay suryakoti samprabha.
nirvighanm kuru me dev sarv karyeshu sarvda.


हिन्दी अर्थ - वक्र के समान घुमावदार सूंड वाले और महान विशालकाय शरीर करोड़ों सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली।
हे मेरे नाथ मेरे प्रभु गणेश जी महाराज मेरे सारे कार्य हमेशा बिना विघ्न के पूरे करने की कृपा करे ।



भगवान गणेश जी महाराज की कृपा आप सब पर हमेशा बनी रहे।


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